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Tuesday, 24 January 2012

इंसानियत का खून करने के बाद पश्चाताप यदि "सद्भावना (गुड विल -Goodwill ) के लिए हे तो गलत बात हे और पाप भी हे !!

कोमी दंगो  में चाहे  हिन्दू ज्यादा मरे हो या मुस्लिम  , धर्मं /जाती से  कोई फरक नहीं पड़ना चाहिए !!! ....क्यों की  मरने वाले  सभी  "इंसान"   ही थे !!  और धर्मं सिर्फ इंसानियत !!!....गंभीरता  से सोचना चाहिए के  कितने  इंसान  क्यों मरे  या मारे गए !!!
ट्रेन  को जलाने वाला भी इंसान था , जलने वाले भी !!!  लेकिन  यह  इंसानियत (धर्मं)  का दुश्मन  कौन ??  इंसानियत का खून करने के बाद  प्रायश्चित करना  अच्छी बात हे  लेकिन किस बात से आपको पश्चाताप हो रहा हे  ये स्वीकारना  जरुरी हे  !
प्रायश्चित करने वाला विनम्रता और साहस के साथ अपने अवगुणों को देख पाता है और निडर होकर उन्हें स्वीकार करता है...
प्रायश्चित करना ईश्वर की ओर उन्मुख होना है !  
जो सिर्फ  "सतकर्म " से इश्वर की ओर  जाया सकता हे  !
पश्चाताप करने का यह मतलब नहीं है कि हम एक ऋतु या किसी विशेष अवसर के लिए पापकर्म छोड़ देते हैं। इसका मतलब होता है सीधा 180 डिग्री पर पलटना या चलना। 

पश्चाताप में अपने पापों को छिपाना नहीं होता है। पापों को छिपाने का मतलब है कि बिखरे हुए बीजों को ढंकना जो बाद में अपने आप उजागर हो जाता है।
पश्चाताप यदि  सद्भावना (गुड विल -Goodwill ) के लिए  हे तो  गलत बात हे  और पाप भी हे !!!...

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